Friday, July 31, 2015

दर्द के आँसू।

खून कर के किसी का, 
चार दिन की चॉंदनी भी कम रही,
शुरू कर दिया किसी और को ढून्ढना,
इतनी भी क्या जल्दी थी। 

अपना दर्द भूल गये,
जो दूसरे को दर्द दे बैठे,
खेला था किसीने दिल से आपके,
तो अब खुद ही खिलाड़ी बन बैठे। 

किसी के अॉंसू नहीं चूबे,
अपने सागर के आगे,
जब हार ही देनी थी तौफहे मे,
तो क्यो खेल खैले सूहाने। 

जूठे वादे जो कर बैठे,
इतनी भी क्या खफां,
कितने जश्न मना लिये,
किसी का भी ना सोचा। 

शायद वो दर्द जूठा है,
जिसकी चूबह्न नहीं है,
अपना दिल जो टूटा,
दूसरे की फिक्र नहीं है। 

ना देखा, ना पूछा,
किस हाल मे जी रहे हैं,
चल पड़े फिर इश्क की खोज मे,
फिर से वही दर्द दौहराने। 

जाओ अापको मांफ किया,
चाहे कितना दर्द दे के भागे,
सह लेंगे इस गम को भी,
जिसको दूबारा जगा गये।  

पर रूकते नहीं ये ज़ालिम अॉंसू,
हर दिन याद करता बेंकाबू,
शायद कमी है मूझमे, 
तभी मै कांफी नहीं। 

इतनी भी क्या खूदगर्जी,
ठोखर मार के मूड़े भी नहीं,
भूलना तो सबकी फीतरत हैं,
कभी प्यार करो तो सही। 

किस्मतों का खेल है ये भी,
कभी तो कर्ज़ चूकाऔगे सही,
सब झूठ, सारे झरौंखे,
हीसाब तो जनाब दोगे ही! 


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