Friday, September 11, 2015

किस्सा किस्मत का।

कोई एक शख़्स तो यूं मिले के सुकून मिले,
कोई एक लफ़्ज़ हो एेसा जो क़रार दे,
कहीं ऐसी रूत भी मिले जो बहार हो,
कभी ऐसा वक़्त भी प्यार हो। 

कोई एक शख़्स तो यूं मिले के चिराग़-ए-जान हो,
उसे नूर दे उससे ताब दे बनें कहकशां,
कोई गम हो जिसे कहा करें गम-ए-जाविद़ान,
कोई यूं कदम मिलाए के बनें कारवाँ।

कोई एक शख़्स तो यूं मिले के गम -ए-हिज़र हो,
मेरे राह गुज़ार ख़याल में कोई फूल हो,
मेरे सफ़र मे मेरे पेरों पे भी धूल हो,
चाह हैं के शायद हमसे भी कोई भूल हो। 

कोई एक शख़्स तो यूं मिले के शाब -ए-तार हो,
जो अक्स-ए-ज़ात हो हूबहू,हो आईना मेरे रूबरू,
वो रब जिसमे ना मैं और ना तु, 
सर-ए-ख़ामोशी गुफ़्तगू। 




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