Friday, September 18, 2015

शायद!

किस रास्ते पे आप छोड़ गए हमें,
ना कुछ ख़बर, ना अपना पता दे गए,
नज़रें ढूँढती हैं हर दिन किसे,
क्या वो असलियत है या नहीं,
डूबते सूरज कीं तरह मगर,
समुन्दर में शायद कोई झलक दिख जाए,
डरते हैं यह पाओं हमारे,
कहीं डगमगा गये तो शायद भूल ना पायें,
बस एक आस हैं की आप पास रहो,
मगर झूँठ के दलदल में हम गिरफ़्तार है,
लेकिन दिल यह कहता है,
सुन ले जों यह कहता हैं,
शायद रब ने चाहा तो,
कल फिर एक नया सवेरा हैं। 

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